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ਤਜੁਰਬੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ

ਸਰੋਂ ਦੀ ਖੇਤੀ

ਸਰੋਂ ਦੀ ਖੇਤੀ 

Sarso (Mustard) Ki Kheti Kaise Kare – सरसों की उन्नत खेती कैसे करें 

Çòô¶ôਸਰੋਂ ਦੀ ਖੇਤੀ ਮੁਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਰ ਜਗਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਫ਼ਸਲ ਦੀ ਖੇਤੀ ਜ਼ਯਾਦਾਤਾਰ ਤੇਲ ਦੇ ਲਈ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ , ਦਿੱਲੀ ,ਉਤਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਗੁਜਰਾਤ ਤੇ ਰਾਜਸਥਾਨ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਦਿੱਲੀ ਵਿਚ ਇਸ ਨੂੰ  ਹਰੀ ਸਬਜ਼ੀ (ਸਾਗ) ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।ਸਰਸੋਂ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਤੇਲ ਦਾ ਮੁਖ ਸਰੋਤ ਹੈ । ਤੇਲ ਦੀ ਜਰੂਰਤ ਸਾਰੇ ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਹੈ ।
सरसों की खेती मुख्य रूप से सभी जगह पर की जाती है । इस फसल की खेती अधिकतर तेल के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में की जाती है तथा शहरी क्षेत्रों के आसपास हरी सब्जी के रूप में पैदा की जाती है । भारतवर्ष में कुछ मैदानी भागों में अधिक पैदा की जाती है । पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान के क्षेत्रों में मुख्य फसल के लिये पैदा की जाती है । पंजाब क्षेत्र व दिल्ली में हरी सब्जी ‘साग’ के नाम से जानी जाती है । सरसों की फसल मुख्य रूप से तेल का मुख्य स्रोत है । तेल की पूरे देश के लिये आवश्यकता होती है ।
सरसों का तेल के अतिरिक्त सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है । इन हरी पत्तियों के अन्तर्गत बहुत अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है । सरसों की पत्तियों का कई प्रकार से प्रयोग करते हैं । साग बनाकर, अन्य सब्जी के साथ मिलाकर, भूजी तथा सूखे साग बनाकर समय-समय पर प्रयोग किया जाता है । इस तरह से प्रयोग करने से प्रोटीन, खनिज तथा विटामिनस ‘ए’ व ‘सी’ की अधिक मात्रा मिलती है । कुछ अन्य पोषक-तत्व होते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिये अति आवश्यक हैं, जैसे-कैलोरीज, कैल्शियम, लोहा, फास्फोरस तथा अन्य कार्बोहाइड्रेटस आदि सरसों में उपस्थित होते हैं ।

सरसों की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Sarso Kheti)

सरसों की फसल के लिये ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है । यह फसल जाड़ों में लगाई जाती है । बुवाई के समय तापमान 30 डी०सेंग्रेड सबसे अच्छा होता है । अधिक ताप से बीज का अंकुरण अच्छा नहीं होता है । ये फसल पाले को सहन कर सकती है ।

सरसों की खेती के लिए भूमि एवं खेत की तैयारी (Sarso Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)

सरसों की फसल के लिए पालक, मेथी आदि की तरह की भूमि की आवश्यकता होती है । वैसे यह फसल भी क्षारीय व अम्लीय भूमि को तोड़ कर सभी भूमि में पैदा की जा सकती है लेकिन सबसे उत्तम भूमि बलुई दोमट या दोमट मिट्टी रहती है । भारी व हल्की चिकनी मिट्टी में भी पैदा की जा सकती है । भूमि का पी०एच० मान 5.8 से 6.7 के बीच होने पर फसल अच्छी होती है ।
सरसों के खेत की तैयारी के लिये सूखे खेत को मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर द्वारा हैरो से 3-4 बार जोतना चाहिए क्योंकि खेत की सब घास कटकर छोटे टुकड़ों में होकर सब मिट्टी में सूख जाये तथा मिट्टी में खाद के रूप में काम आये । 10-15 दिन के बाद ट्रिलर द्वारा दो-तीन बार जुताई करनी चाहिए । इस प्रकार जुताई करने से खेत घास रहित, ढेले रहित तथा मिट्टी भुरभुरी हो जाती है । खेत में देशी खाद डालकर व मिलाकर मेड़-बन्दी करके क्यारियां बनानी चाहिए ।
सरसो को बगीचों में अधिक उगाया जाता है तथा भूमि को अच्छी तरह से देशी खाद डालकर खोदना चाहिए जिससे खाद भली-भांति मिल जाये तथा मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी हो जाये । बाद में छोटी-छोटी क्यारियां बनानी चाहिए । गमलों में भी सरसों को लगाया जाता है जिससे तैयार मिट्टी को गमलों में भर कर बीज बो देना चाहिए ।

खाद एवं रासायनिक खादों का प्रयोग (Manure and Chemical Fertilizers)

सरसों की फसल के लिये देशी खाद की अधिक आवश्यकता होती है । देशी गोबर की खाद 20-25 ट्रोली प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है तथा रासायनिक उर्वरकों की मात्रा नत्रजन 60 किलो, डाई-अमोनियम फास्फेट 40 किलो, पोटाश 40 किलो तथा जिप्सम 60 किलो प्रति हेक्टर की दर से देना चाहिए । नत्रजन की आधी तथा फास्फेट व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा को बुवाई से पहले मिट्टी में भली-भांति मिला देना चाहिए तथा नत्रजन की शेष मात्रा को फसल को 25-30 दिन की होने पर खड़ी फसल में टोप-ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए । उपरोक्त उर्वरकों के प्रयोग के बाद आशा से अधिक पैदावार मिलती है ।
बगीचे में अधिकतर सरसो को सब्जी के लिये उगाते हैं कि पत्तियों को हरी सब्जी के लिये समय-समय पर प्रयोग कर सकें । अधिक पत्तियां लेने के लिए देशी खाद 5-6 टोकरी, यूरिया 500 ग्राम, डी.ए.पी. 600 ग्राम तथा पोटाश (M.O.P.) 500 ग्राम की मात्रा 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है । 250 ग्रा० यूरिया तथा DAP, MOP की पूरी मात्रा को खेत तैयार करते समय या गोदते समय मिला देना चाहिए । शेष यूरिया को 15-20 दिन के बाद-छिड़क देना चाहिए । इन उर्वरकों की मात्रा देने से भरपूर पत्तियां व तना प्राप्त किये जा सकते हैं तथा गमलों में 3-4 चम्मच DAP, 2-3 चम्मच MOP तथा यूरिया 1-2 चम्मच प्रति गमले की मिट्टी में मिलाकर भरना चाहिए तथा बड़े पौधे होने पर प्रति गमला 1-2 चम्मच यूरिया डालना चाहिए ।

सरसों की प्रमुख उन्नति जातियां (Mustard Improved Varieties)

सरसों की अनेक जातियां उपलब्ध हैं । तेल वाली तथा सब्जी के लिये अधिक पत्तियां देने वाली प्रमुख विकसित जातियां निम्न हैं जिन्हें दो-तीन वर्ग में बांटा है-

1. लहटा-सरसों-पूसा बोल्ड (Pusa Bold), वरूना (Brassica Juncea) (Varuna), iii. आर.एस-30 (R.S.-30), iv. पूसा-क्रांति (Pusa Kranti), v. पूसा-वरानी (Pusa-Varanai) |
ये किस्में अधिकतर तेल पैदा करने के लिये उगायी जाती है तथा साथ-साथ इनसे पत्तियों व तनों को तोड़कर हरी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है जिसे गोभी सरसों कहते हैं ।
2. गोभी सरसों (Brassica-Comprises, Brassica-Napus)- ये किस्म भी अधिकतर हरी पत्तियों के लिये उगायी जाती है । B. Compestris से तेल अधिक मिलता है तथा B. Napus पत्तियों की मुख्य किस्म है । इसकी पत्तियां बड़ी-बड़ी मुलायम तथा स्वदिष्ट होती हैं जो कि बोने के 20 दिन के बाद मिलने लगती हैं ।
3. जापानीज सरसों (Japanese Mustard)- इस किस्म की सरसों के पौधों की पत्तियां अधिक बड़ी-बड़ी होती हैं जो अधिकतर मुख्य रूप से सब्जी व सलाद के लिये बोई जाती हैं । इसकी पत्तियों को तोड़कर हरी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

बुवाई का समय, ढंग तथा दूरी (Sowing Time, Method and Distance)

सरसों की फसल को दो उद्देश्य से बोते हैं । पहलाअन्य फसलों के साथ मिलाकर तथा दूसराउद्देश्य केवल सब्जी के लिए । अगेती फसल सितम्बर में बोते हैं तथा पिछेती फसल को नवम्बर के अन्त तक बोया जाता है तथा मुख्य फसल को सितम्बर के मध्य से अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह तक बो देना चाहिए ।
फसल को बोने के दो मुख्य ढंग हैं-प्रथम-कतारों में, दूसरा-छिड़ककर । ज्यादातर कतारों की बुवाई के लिए सिफारिश की जाती है । कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी० रखनी चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. रखना उचित होता है । पहाड़ी क्षेत्रों में सब्जी के लिये सरसों को मई-जुलाई तक बोया जाता है । सब्जी वाली फसल की दूरी कम भी की जा सकती है । इस अवस्था में अगेती बोकर शीघ्र काटकर दूसरी फसल ले सकते हैं । कतारों में बुवाई ट्रैक्टर द्वारा सीडड्रिल से की जा सकती है । जिससे निकाई-गुड़ाई करने तथा खरपतवारों को उखाड़ने में आसानी रहती है ।

बीज की मात्रा (Seeds Rate)

सरसों का बीज 6-7 किलो की आवश्यकता पड़ती है जो एक सप्ताह में अंकुरण कर जाता है । बगीचे के लिए 15-20 ग्राम बीज 8-10 वर्ग भी. के लिए पर्याप्त होती है ।

सिंचाई एवं खरपतवार नियन्त्रण (Irrigation and Weeds Control)

सरसो की फसल को पलट करके बोना चाहिए ताकि नमी रहे । बोने के 15 दिन के बाद पहली हल्की सिंचाई करनी चाहिए । इस सिंचाई से यह लाभ होता है कि ऊपर बीज रह जाने से या कम नमी के कारण बीज अंकुरण नहीं कर पाता तो पानी लगने से बीज अंकुरण कर जाता है । बाद में नमी अनुसार 1-2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है ।
सिंचाई के बाद रबी मौसम की फसलों के खरपतवार उग आते हैं जिनको खुरपी से निकाई-गुड़ाई करते समय निकाल कर खेत से बाहर फेंक देना चाहिए । बगीचों में पानी समय अनुसार देते रहना चाहिए । कहने का तात्पर्य यह है कि फसल के खेत में नमी रखनी अति आवश्यक है । गमलों में प्रतिदिन शाम हल्का-हल्का पानी देते रहना चाहिए ।
थिनिंग (Thinning)- इस फसल की थिनिंग करना अति आवश्यक है । छोटा दाना होने के कारण बीज बोने में अधिक गिर जाता या कम अंकुरण की वजह से अधिक बोया जाता है जोकि सभी उग आता है । इसकी वजह से पौधों को 10 सेमी० की दूरी पर रखना पड़ता है । आवश्यकता से अधिक पौधों को उगाना अधिक आवश्यक है । इसी को थिनिंग कहते हैं । यह क्रिया निकाई के समय ही करनी चाहिए ।
फसल की कटाई या तुड़ाई (Harvesting)- फसल बोने के बाद बड़ी पत्तियां होने पर तोड़ते रहना चाहिए । लेकिन हरी-पत्तियां उतनी तोड़नी चाहिए कि पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिए पत्तियों का भोजन बना सकें और बीज का पूर्ण रूप से विकास हो सके । इस प्रकार से पत्तियों को समय के अनुसार तोड़ते रहना चाहिए तथा फसल को पकने के समय ध्यान रखना चाहिए कि फलियां पीली पड़ने पर ही कटाई करनी चाहिए अन्यथा सीड जमीन में गिर जायेगा । क्योंकि अधिक सूखने से फलियां सेंटर कर जायेंगी जिससे उपज कम हो जायेगी ।
उपज (Yield)- सरसों से हरी पत्तियों के रूप में 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टर पत्तियां प्राप्त हो जाती हैं तथा बीज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टर प्राप्त हो जाता है । बगीचे में पत्तियां 20-25 किलो 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र से प्राप्त हो जाता है जोकि हरी सब्जी के रूप में मिलती रहती है तथा बीज 46 किलो मिल जाता है ।

रोगों से सरसों की फसल का बचाव (Rogo Se Sarso Ki Fasal Ka Bachav)

सरसों की फसल पर अधिकतर दो ही बीमारी लगती हैं ।
कीट, गुच्छा व पाउडरी मिल्ड्यू- इससे पौधे के सम्पूर्ण भाग पर सफेद पाउडर सा लग जाता है । इसके बचाव के लिए फसल को अगेता बोना चाहिए तथा सल्फर की धूल बुरकना चाहिए । कीट अधिकतर एफिडस लगते हैं जिन्हें मेटासीड, रोगोर के 1% घोल से नियन्त्रित कर सकते हैं ।

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